गुरुवार, 21 नवंबर 2013

सिर फुटव्वल: शुभम श्री का व्यंग्य भाया सचिन

  • चीजें जो सचिन को करनी चाहिए थीं-
    सचिन को सबसे पहले एक मार्क्सवादी क्रिकेटर होना चाहिए था और साथ ही सशस्त्र क्रांति का आह्वान भी करना चाहिए था । मेरा हर रन जल,जंगल,जमीन की लड़ाई के लिए बनाया जा रहा है, हर मैन ऑफ द मैच अवार्ड में नक्सलबाड़ी लाल सलाम का नारा देना चाहिए था । सचिन एक दलित चेतना विहीन क्रिकेटर रहा । उसके भीतर दलित चेतना होनी चाहिए थी । स्त्री चेतना भी नहीं आई उसमें । कोक, पेप्सी का एड करने के बदले उसे कहना चाहिए था कि तुम संब कंपनियां अमेरिकी पूंजी की पैरोकार हो, भागो अमेरिकी साम्राज्यवादियों, मैं तीसरी दुनिया के देश का खिलाड़ी हूं । उसे कॉरपोरेट एड ठुकराने चाहिए थे यह कहते हुए कि तुम सब लाखों लोगों को मार रहे हो, मेरी नैतिक जिम्मेदारी है कि मैं तु्म्हारा विरोध करुं । हर मैच के पहले इंटरव्यू में रन बनाने की कोशिशें और खेल में आगे बढ़ने के बदले उसे सामंतवाद, ब्राह्मणवाद, पितृसत्ता की एक सारगर्भित आलोचना प्रस्तुत करनी चाहिए थी । ऑफ साइड की तरह ये दसवीं फेल क्रिकेटर इस चेतना को मजबूत नहीं कर पाया । हॉवर्ड-कोलंबिया न सही पुणे या मुंबई यूनीवर्सिटी से ही पीएचडी या मास्टर्स कर लेता जेंडर स्टडीज चाहे किसी प्रगतिशील कोर्स में । इन सबके अलावा बीसीसीआई के खिलाफ भी उसे हल्ला बोलना चाहिए था और व्यवस्था को तोड़ना चाहिए था । तोड़ने ही होंगे गढ़ और मठ सब । उसे ऑर्गेनिक इंटेलेक्चुअल की तर्ज पर ऑर्गेनिक क्रिकेटर बनना चाहिए था और मुक्तिबोध की तरह मरने के बाद महान होने का इंतजार करना चाहिए था । इसके अलावा जसम, प्रलेस, जनम, इप्टा, क्रांतिकारी, जनवादी सांस्कृतिक मोर्चों की सदस्यता भी ले सकता था । पार्टी क्रिकेटर बन कर तो वो और बेहतर खिलाड़ी हो सकता था । लेकिन वो बुर्जुआ-प्रतिक्रियावादी-ब्राह्मणवादी-पूंजीवादी-बाजारवाद के पोषक खेल को खेलता रहा और पैसे कमाता रहा । क्या कर सकते हैं, बौद्धिकता की कमी ! क्रिकेट जैसे खेल में झोंक दिया खुद को..
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