शनिवार, 6 अगस्त 2016

गीत-समीक्षा

(दीप्ति की यह समीक्षा शायद प्रभाववादी और भावुक लगे, लेकिन कुछ गाने होते ही ऐसे हैं जिनपर यूं ही लिखना होता है गोया सागर की मौजों पर बहे जा रहे हों. पाठक लुत्फ़ लें, और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें. हमें और समीक्षाओं का इंतज़ार रहेगा.
- सम्पादक मंडल)
इस गाने के बारे में व्यूज़ तो समझने लायक उम्र से ही काफी आशिकाना थे, मगर रिव्यू तक आते आते चाहत का मामला काफ़ी गंभीर हो चुका है.ये गाना नहीं एक संगीतमय यात्रा है हमारे लिए और गाने में आनंद ही आनंद..देव आनंद निर्मित,विजय आनंद निर्देशितफ़िल्म "तेरे घर के सामने"
यूँ तो फ़िल्म के सारे गाने बेहद कर्णप्रिय हैं पर जब रात है तो बात नशीली रात की...
"तू कहाँ ये बता इस नशीली रात में "
अहा ! क्या रूमानी और शायराना अंदाज़ में गाया, बनाया और निभाया गया है गाने को........राहुल देव बर्मन का संगीत इस फ़िल्म की अभूतपूर्व सफलता का अभिन्न अंग था। देव साहब के लिए ज्यादातर गाने किशोर दा ने गाये हैं पर सचिन दा ने ये गाना शायद रफ़ी जी के लिए ही कंपोज़ किया था.. ग़ज़ब !!! मजरूह सुल्तान पुरी का लिखा हुआ गाना है,मजरूह हमेंशा ही मजबूर करते हैं उनके गानों से प्यार करने के लिए सुन्दर और सरल भाषा में लिखा हुआ ये गीत प्रेम में डूबा हुआ . वी रात्रा की सिनेमेटोग्राफी ,बाबू शेख़ की एडिटिंग, इन सब पर कुछ कहने लायक तो नहीं पर बात भी जरुरी है ना.
1 जनवरी 1963 में रिलीज़ इस फ़िल्म के फिल्मांकन की बात की जाये तो बेशक कुछ चुने हुए बेहतरीन गानों में से एक होगा।खूबसूरत रात..सचमुच आहों का धुआँ.. साथ साथ चलते और मचलते देवदार के पेड़.. बर्फ की रेशमी चादर ओढ़े पीछे दिखते पहाड़....उफ़्फ़्.. और उस पर देव आनंद का टोपी गिराने और पलकें उठाने का अंदाज़ वल्लाह!!! काश सच में गाने में जो लैम्पपोस्ट था उसके नीचे शॉल ओढ़ बैठकर देव साहब को रोमांटिक अंदाज़ में देख पाते........................अरे नहीं बहक रहे हैं हम
तो बात गाने की..अब उसकी बात जिसका जादू सबसे ज्यादा है,वो रफ़ी साहब की आवाज़.. जैसे दूर पहाड़ों से आती मद्धम ठंडी हवा..किस नशीले अंदाज़ में गाया है भई वाह..!!!.प्रणाम है उन सारे लोगों को जिन्होंने इसमें वाद्य यन्त्र बजाया है..तबले के तो क्या कहने.... अब देव आनंद पूछें कि तू कहाँ ये बता, तो हम तो सात समन्दर पार से भी आ जाते..नूतन जी तो फिर भी वहीं थीं जिनकी तरह ही सरल,शालीन.प्यारा और पवित्र गाना है ये....
गाना रिपीट मोड पर डाल दिया था, इसलिए अब उंगलियां भी नशे में धुत्त हैं तो ना जाने क्या क्या लिखने से चूक गए हम..फिलहाल आज बस इतना ही,फिर जल्द किसी और ऐसे ही जादुई गाने के बारे में बात होगी..
पर अभी मामला इस गाने के जादू का संगीन हो चुका है...
पर रात जितनी भी संगीन होगी
सुबह उतनी ही रंगीन होगी
दीप्ति श्रीवास्तव