आवरण , आकल्पन ( लेआउट ) या कवर डिजाइन ; 'पुस्तक चित्रांकन' (बुक इलस्ट्रेशन) जैसी कला है, जहाँ चित्रांकन स्वायत्त नहीं होता, बल्कि पुस्तक की अंतर्वस्तु से निर्मित होता है. यही नहीं बल्कि शब्द एवं चित्र के रंगों की दृष्टिगोचरता , कैनवास के सीमित आकार इस कला रूप की व्यावहारिक सीमाएं बन जाती हैं. आवरण के आकल्पन का मुख्य ध्येय शब्दांकन ( लेटरिंग) रेखांकन (ग्राफिक्स) व चित्रांकन( पेंटिंग) का ऐसा संयोजन ढूँढना होता है कि दर्शक का सहज ही ध्यानाकर्षण हो सके. यूरोप में पुस्तक के मुखपृष्ठ , पीछे के पृष्ठ एवं पुट्ठे( स्पाईन) के आकल्पन के लिए बड़े प्रकाशक अलग अलग विशेषज्ञ कलाकारों की सेवायें लेते हैं. अब वहाँ आवरण पृष्ठ का मुख्य कार्य , जिल्द को बचाना ही नहीं रहा , बल्कि वह किताब की बिक्री को प्रभावित करने वाला सबसे सक्षम कारक बन गया है. यह सच है कि व्यवसाय के दबाव में ही सही, यूरोप में कवर डिजाइनिंग एक स्वतंत्र कला का रूप ले चुकी है. जिसके प्रमाण ब्रास संग्रहालय, होकेन पुस्तकालय-संग्रहालय एवं ऑकलैंड सिटी लाइब्रेरी के हेनरी shaw जैकेट संग्रह में देखे जा सकते हैं. ज़ाहिर है कि भारत में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. यहाँ के प्रकाशक पर व्यवसाय का कोई ऐसा दबाव भी नहीं है. वे पुस्तक बिक्री के लिए आवरण सज्जा को आकर्षक बनाने के लिए कलाकारों की शरण में जाने की बजाय पुस्तकालयाध्यक्ष को कमीशन देकर यह काम आसानी से कर लेते हैं, फिर यहाँ के लेखक भी शायद ही कभी अपनी पुस्तक की आवरण सज्जा में कोई रूचि दिखाते हैं ! इसलिए यह आकस्मिक नहीं कि यहाँ की किताबों में , विशेषकर अधिकाँश हिंदी किताबों में आवरण , आकल्पन को कोई श्रेय भी नहीं दिया जाता. इसके बावजूद अरविन्द कुमार, सुरेन्द्र राजन , हरिपाल त्यागी , रामकिशोर पारचा , गिरिधर उपाध्याय , सोरित एवं गोबिंद प्रसाद का काम आश्वस्त करता है.
प्रस्तुत चित्र गोबिंद प्रसाद के अधिकाँश आवरण चित्रों की तरह अमूर्त है एवं पोस्टर रंग से बनाया गया है. सफ़ेद, लाल , पीले , धूसर मटमैले रंगों के बीच छिटकती हुई नीली रेखाएँ ब्रह्माण्ड के किसी रूपाकार का अनुकरण नहीं करती और ना किसी सांसारिक स्थिति की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति बनने की चेष्टा ही करती हैं; बल्कि यह मन के किसी सचेत राग को किसी दिशा में उन्मुक्त करती स्फूर्ति का आभास कराती हैं. ऐसे बहुरंगी चित्र का उपयोग आवरण सज्जा के समग्र आकल्पन में रंग-संगति के लिए काफी सहायक होता है, साथ ही अपनी प्रकृति में अमूर्त होने के कारण किसी भी पुस्तक की भाव संगति बैठाने में भी काफी मददगार साबित होता है.
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