रविवार, 16 सितंबर 2012

पंखुरी सिन्हा की कवितायें





उनकी बैठक
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अपनी बैठक पर उन्हें खासा फ़क्र था
'उन्हें' से ज्यादा 'उसे'
टीक की लकड़ी का आयात कर
उन्होंने दीवान बनवाया था ,
और चार कुर्सियाँ।
फैशनेबल फर्नीचर शो-रूम से
सोफ़े खरीदे गए थे ,
और उसने सजाया था इस सब कुछ को
स्टेट इम्पोरियम के हस्त-शिल्प से,
ट्राइबल पेंटिंग्स
सीप के पर्दे
पर लोगों को कुछ भी पसंद नहीं
उसका अपना अंदाज़ तक नहीं
बालूचरी सूती साड़ियाँ
बिना काजल बिंदी वाला ,
उसका अक्स नहीं
तेज़ आवाज़ नहीं
लोगों को कुछ भी पसंद नहीं ,
जबकि सबकुछ मध्यवर्गीय था ,
सारे कमाए हुए पैसे ,
रिश्वत की एक दमड़ी नहीं
पर अकड़ बहुत थी उसमें
और हातों के बाहर का माद्दा बहुत
इसलिए उस बैठक में होने वाली
सारी  बातों की परिणति,
भयंकर बहसों में हो रही थी ,
और अगर वह नाकाफी था ,
तो शहर में,
इन्टरनेट नामक उस जादुई जगह पर,
सबके  अपने अपने पन्ने थे ,
सिर्फ उसके खयाल पूरी तरह आयातित,
और आयातित ख़यालों की वजह से,
वह एक विदेशी गुड़िया कहलाती जा रही थी
और जानकारों का कहना था ,
कि पुरानी थी सब बातें
लेकिन नया था उनका मंचन,
नए प्रयोग थे,
नया था नदी का प्रवाह,
नए विकल्प  थे ,
नई थी इतने एहसासों की बातें ,
मनुष्यता पर इतना बल
दोनों खेमों की पहचान की लड़ाई से इतर,
सिर्फ मनुष्यता से इतना बल
ये क्रॉस बॉर्डर बातें,
और वह पिरोती जा रही थी ,
उन्मुक्त भावों को ,
सबकी नापसंदगी के बावजूद,
उसकी दलील थी ,
कि अपनी पसंद से सजने चाहिए,
सबके पन्ने ,
सजनी चाहिए ,
सबकी बैठक
और उसकी दलील थी ,
कि बाज़ार बहुत कुछ था
पर सब कुछ नहीं ,
और उसकी दलील थी ,
कि बाज़ार बड़ी आसानी से,
द्रवित होने वाला ,
सरल तत्वों से बना ,
एक नरम दिल हस्ती था -
जिससे बातें की जा सकती थीं ,
उसकी दलील थी कि ,
उसे किसी भी क्षेत्र को
आयात क्षेत्र में नहीं बदलना था ,
एक बराबर की अनुभव वार्ता करनी थी।
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2-गुरिल्ला वार

क्या आपने लड़ी है ,
कभी ऐसी कोई लड़ाई
आखिरी मोर्चे की लड़ाई,
दुश्मन के करीब आते ,
उसकी पदचाप सुनते
उसके बेहद कीमती,
नफीस बूटों की आवाज़ सुनते ,
ये जानते कि कितनी ताकतवर है उसकी बंदूक,
कितना अचूक उसका निशाना ,
लड़ना, एक नितांत अपरिचित जंगल में ,
जिसकी लताएँ कँटीली हों ,
चट्टानें नुकीली,
बारिश का वेग भयंकर हो ,
खड़े हो पाना नामुमकिन ,
पेट के बल चलकर ,
हाथ और पैर दोनों से चलकर ,
चारों से चलकर ,
कभी की है आपने कोई लड़ाई ?
अपने से ज्यादा ताकतवर,
शत्रु को पछाड़ते ,
कुनैन की आखिरी गोली खाकर ?
कभी की है आपने कोई लड़ाई ?
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कवयित्री-
* दो कहानी संग्रह 'कोई भी दिन' और 'किस्सा-ए-कोहिनूर' ज्ञानपीठ से प्रकाशित,
*कविता संग्रह 'ककहरा' शीघ्र प्रकाश्य
* गिरिजा कुमार माथुर -पुरस्कार 1995
* चित्रा कुमार-शैलेश मटियानी
* संप्रति - कनाडा में रहकर  स्वतंत्र लेखन ।
उनसे sinhapankhuri412@yahoo.ca पर संपर्क किया जा सकता है ।











20 टिप्‍पणियां:

  1. युग जमाना के बाद यहां आपकी कविताएं पढना अच्‍छा लगा काफी, जिस अलहदेपन को वहां अलग अंदाज की तरह पाया उसे यहां ज्‍यादा सशक्‍त ढंग से अभिव्‍यक्‍त किया है आपने, इन्‍हें पढते हुए आपके मुकाबिल हो इन्‍हें सुनने की ईच्‍छा हुयी... अपनी नयी कविताएं पढाती रहिएगा

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    1. Bahut dhanyawad Mukul ji, aur der se de rahi hoon yah dhanyawad. Iske baad aapne mujhe Kalptaru mein chapaa bhi. Kavitayein hi likh rahi hoon in dino sabse zyada. Asha hai pasand aayengi. Aapke protsaahan ka intazar hai. Kavita path ek bada sa aayojit karte hain.

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  2. दोनों ही कवितायेँ बहुत अच्छी लगी, सार्थक अभिव्यक्ति....पढवाने के लिए शुक्रिया.....

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    1. Bahut shukriya Anju ji. Milkar bahut, bahut achcha laga. Asha hai hum khoob dhera rachna path saath karengein.

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  3. पाँखुरी जी! अक्षरौटी पर आपकी दोनों कवितायेँ पढ़ीं| बहुत अच्छी लगीं| भावों को बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति प्रदान की है आपने| बधाई हो!
    ---- डा० अशोक मधुप
    (गीतकार, ग़ज़लकार, अभिनेता एवं निर्देशक)
    अध्यक्ष, कायाकल्प साहित्य-कला फ़ाउंडेशन, नोएडा ।

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    1. Bahut dhanyawad Dr Madhup ji. Asha hai jaldi aur milna hoga.

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    2. Abhi pichle book fair mein jo kavita sangrah aaya, uski sameekshayein aa rahi hain. Asha hai jaldi hi kisi kavita path mein bheint hogi.

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  4. Aapki pahli kavita transition phase ko kafi umda bayan karti hai aur doosari...larne ki us jajba ko jo kahti hai...we shall fight . we shall win...
    thnx for your creation...
    Regards
    Suiraj Sinha

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  5. सार्थक अभिव्यक्ति............इन्टरनेट नामक उस जादुई जगह पर,
    सबके अपने अपने पन्ने थे ,
    सिर्फ उसके खयाल पूरी तरह आयातित,
    और आयातित ख़यालों की वजह से,
    वह एक विदेशी गुड़िया कहलाती जा रही थी

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  6. उत्तर
    1. Thankyou Nitya Bhai, aapse milkar bahut khushi hui. Asha hai hum anek sansthayon ke banner tale saath rachna path karenge

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  7. dono kavitayen samyanukul aur yatharth ko prastut karti hain.gurilla ....jyada prabhavshali lagi...

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    1. Shukriya Tikendra ji, yahan se shuru hokar meri kavitayein dheron blogs aur patrikaon mein aa rahi hain. Asha hai pasand aayengi.

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  8. दोनों कविताएँ एकदम अलग हैं. गुरिल्ला वार क्या वही नहीं है जिसे अपने विचारों, पसंद,जीवन शैली के कारण विदेशी गुड़िया कहलाने वाली स्त्री प्राय: लड़ने को बाध्य हो जाती है?
    घुघूती बासूती

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  9. बहुत खूब ! बेहतरीन ! बढ़िया !

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  10. पंखुरी जी ,कविताओं में बिम्ब के महकते तेवर मन को भाते विचारों को उत्प्रेरित भी करते हैं.और,अपना भी बना लेते हैंं पंखुरी, आप कनाडा में हो,विदेशों में बसी भारतीय पीढी के सुख, त्रासद, यादघर, अपने देश की माटी ,सात समंदर पार...पंखुरी आप महकते दहकते अल्फाज़ों के फूल भेजती रहें.स्नेह.....

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